मगर ये झूट है, अब सिर्फ़ नाम बोलता है
ख़मूश होके सुना करते हैं जहाँ वाले
ज़ुबाँ से अपनी जो रब का कलाम बोलता है
फिर उसकी चुप पे नहीं बोलते हैं हम क्योंकर
हमारे वास्ते जो सुब्ह ओ शाम बोलता है
है भाईचारगी बाक़ी, के जब भी मैं उसको
सलाम करता हूँ वो राम राम बोलता है
हर एक बार हुआ है अवाम का नुक़सान
वो एक नेता के जब बे-लगाम बोलता है