दिल में ख़िज़ाँ है आँखों में बरसात का मिज़ाजम
त पूछ मेरी तल्ख़ी-ए-हालात का मिज़ाज
शायद के कर रहे हैं वो रिमझिम रिधम पे रक़्स
बदला हुआ है शह्र में बरसात का मिज़ाज
इस रौनक़-ए-दयार से लगता है डर मुझे
बख़्शा है मुफ़लिसी ने सियह रात का मिज़ाज
अपनी घड़ी मैं देख रहा हूँ घड़ी घड़ी
बदलेगा वक़्त किस घड़ी हालात का मिज़ाज
शोख़ी अदा है नाज़ है नख़रा ग़ुरूर है
फ़ितरत में हुस्न के है तिलिस्मात का मिज़ाज
दम घोंटता हूँ वस्ल की ख़्वाहिश का सुब्ह ओ शाम
सिमटा है दिल में हिज्र की औक़ात का मिज़ाज
जो आज है उरूज पे कल उसका हो ज़वाल
जाना है किसने उसके किनायात का मिज़ाज
साक़ी तेरे दयार में ज़ाहिद जो आ गया
पल में बदल गया है ख़राबात का मिज़ाज
आलम 'नसीम' वहशत-ए-दिल का न पूछिये
बनता नहीं किसी से मुलाक़ात का मिज़ाज
#NaseemAzmi