याद में तेरी नींद गवानी पड़ती है
जैसे तैसे रात बितानी पड़ती है
वीरानी जब अंदर तक छा जाए तो
सहरा सहरा ख़ाक उड़ानी पड़ती है
प्यार की ख़ातिर राह बनाने से पहले
नफ़रत की दीवार गिरानी पड़ती है
झूठ कहूँ तो गिर जाता हूँ नज़रों से
सच बोलूँ तो जान गवानी पड़ती है
जाने किस दिन होंगे हम बेदार नसीम
लाश अपनों की रोज़ उठानी पड़ती है